हारा था जब मैं अपनों से ... वक़्त का ही तो, दामन थामा था .. घड़ी की टिक टिक में ही .. अपनी ज़िन्दगी को मैने बांटा था .. रुका नहीं दर्द मेरा कभी भी.. हर लम्हा तन्हायी का, सन्नाटा था.. ना ख़तम हुए इंतज़ार को भी .. इसी की मदद से तो, नापा था.. बीच… Continue reading क्या कहूँ तुझे….समय या दोस्त..?
Month: December 2017
हताश है सोच मेरी..
प्यार की जंग में शिकस्त से रूबरू हो चुका हूँ, इतना कि, खुदा की रहम पर भी अब ऐतबार ना होगा।। - #yuvispoetry -