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कैसे रोकूं मैं खूद को…

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अलफ़ाज़ो मे हैं कम, मेरा हाथ,

पर ख्याल हैं, बेलगाम बड़े हुए,

उतारु कैसे इन रंगीन सपनों को मेरे,

श्याही के रस्ते इस कागज़ पर ।।

…………….

अलफ़ाज़ो मे हैं कम, मेरा हाथ,

पर दिल में हैं लाखों दुनिया, बसी हुई,

बताऊँ कैसे इस नये ज़माने को, अन्दाज़ मेरा,

श्याही के रस्ते इस कागज़ पर ।।

…………….

अलफ़ाज़ो मे हैं कम, मेरा हाथ,

पर बेशरमी हैं तिनके तिनके मे, भरी हुई,

छिपाऊ कैसे इस, लिहाज के दामन को मेरे,

श्याही के रस्ते इस कागज़ पर ।।

**………**

47 thoughts on “कैसे रोकूं मैं खूद को…”

  1. अलफ़ाज़ो मे हैं कम, भले आपका हाथ,
    पर यह देख के भी हम तारीफ कम नहीं करेंगे।
    अति सुन्दर।।।।। 😊😊😊😊😊😊 😁😁😁😁😁😁😁

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  2. बहुत सुंदर कविता !!!! कविता पढ़ कर तो नहीं लगता आपके पास शब्दों या अलफ़ाजों की कमी है। 🙂

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